मध्यप्रदेशराज्य

मप्र के भ्रष्ट अधिकारियों की खैर नहीं

भोपाल। मप्र में अब भ्रष्ट अधिकारियों की खैर नहीं है। दरअसल, भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की सरकार ने डेडलाइन तय कर दी है। अब ऐसे अधिकारी कर्मचारी विभाग में सांठगांठ कर कार्रवाई से बच नहीं सकेंगे। ऐसे सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ संबंधित विभागों को समय सीमा में प्रकरण चलाने की अनुमति देनी होगी। केन्द्र सरकार के पत्र के बाद अब राज्य सरकार ने सभी विभागों को इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि अभियोजन स्वीकृति देने में अब समय सीमा में ही काम करना होगा। कुछ खास प्रकरण में एक माह का अतिरिक्त समय मिलेगा। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी किए गए आदेश के बाद भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई में तेजी आने की उम्मीद जताई जा रही है। प्रदेश में 274 प्रकरण ऐसे लंबित हैं, जिनमें अभियोजन स्वीकृति न मिलने की वजह से कार्रवाई शुरू नहीं हो पा रही। इसको लेकर ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त विभागों को पत्र लिख चुके हैं।
सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा सभी विभागों के प्रमुखों को निर्देश में कहा है कि कर्मचारी अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति के आवेदन मिलने के तीन माह के अंदर इसे जारी करना होगा। मामले में विधिक राय और अन्य कारणों को देखते हुए कुछ मामलों में एक माह का अतिरिक्त समय दिया जा सकता है। राज्य सरकार ने यह आदेश भारत सरकार कार्मिक लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय से प्राप्त पत्र के बाद जारी किया है। इस पत्र में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 19 में साल 2018 में किए गए संशोधन का हवाला दिया गया है। इसमें अभियोजन स्वीकृति की समय सीमा निर्धारित की गई है।  सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ लंबित भ्रष्टाचार के मामलों में संबंधित विभाग कार्यवाही की मंजूरी नहीं रोक सकते। उन्हें तीन महीने के भीतर अभियोजन की मंजूरी देनी होगी। इस संबंध में केंद्र सरकार ने राज्यों को निर्देश दिया है कि भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई की मंजूरी देने में देरी नहीं होनी चाहिए। कहा गया है कि ऐसे मामलों में आरोपी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ चार महीने के अंदर कार्रवाई की इजाजत दी जाए। इसके आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागाध्यक्षों को निर्देश दिया है कि भ्रष्टाचार के मामले में तीन माह के भीतर कार्रवाई की अनुमति दी जाये, लेकिन विशेष परिस्थिति में यह अवधि अधिकतम एक माह तक बढ़ाई जा सकती है।

विभाग कार्यवाही की मंजूरी नहीं रोक सकते
 केंद्रीय कार्मिक लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय (डीओपीटी) ने 18 अक्टूबर को सभी मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर भ्रष्टचार के पेंडिंग मामलों में नाराजगी जताई है। डीओपीटी ने क्रप्शन के मामलों में अभियोजन की मंजूरी देने में विलंब किए पर कहा कि इन प्रकरणों में 3 माह के भीतर अभियोजन की स्वीकृति दी जाए। यह पत्र केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव एपी दास जोशी के हस्ताक्षर से जारी किया गया है, जो सीएस कार्यालय को 29 अक्टूबर को मिला है। इसमें कहा गया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-19 में संशोधन किया गया है। अभियोजन की मंजूरी देने में विलंब को लेकर किए गए परीक्षण से पता चला की राज्यों की स्थिति बेहतर नहीं है। एक आईएएस पर 25 केस दर्ज वर्तमान में लोकायुक्त तथा ईओडब्ल्यू में भ्रष्टाचार को लेकर 274 मामले दर्ज किए हैं। लोकायुक्त में सेवानिवृत्त आईएएस रमेश थेटे के विरुद्ध 25 प्रकरण दर्ज है। अधिकांश प्रक रणों में रमेश थेटे के साथ तहसीलदार आदित्य शर्मा भी आरोपी बनाए गए हैं। इनके विरुद्ध वर्ष 2013 में ही अलग-अलग तारीखों को विभिन्न धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज कर वर्ष 2014 और 2015 में अभियोजन स्वीकृति मांगी गई है, लेकिन सरकार ने अभियोजन स्वीकृति के प्रस्ताव पेंडिंग पडें हुए है। वहीं 8 वर्तमान और सेवानिवृत्त आईएएस सहित अन्य अधिकारियों के विरुद्ध राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) में क्रप्शन के मामले दर्ज हैं और ईओडब्ल्यू द्वारा भी मांगी गई अभियोजन की मंजूरी नहीं मिली है। पिछले दिनों कैबिनेट ने करीब आधा दर्जन अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति दी है। जीएडी ने संबंधित अफसरों को लिखा पत्र सामान्य प्रशासन विभाग (कार्मिक) ने 21 नवंबर को सभी विभागाध्यक्ष, प्रमुख सचिव, संभागीय कमिश्नर तथा कलेक्टरों को पत्र लिखते हुए डीओपीटी के निर्देशों का हवाला देते हुए लंबित अभियोजन के प्रकरणों में कार्रवाई करने को कहा है। वैसे सबसे आईएएस अधिकारियों से जुड़े मामले जीएडी में ही लंबित हैं।

कार्रवाई की मंजूरी लंबित है
भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय ने इस संबंध में सभी राज्यों को पत्र जारी किया है। आपको बता दें कि मध्य प्रदेश में लोकायुक्त और आर्थिक अपराध शाखा में भ्रष्टाचार से जुड़े 274 मामले चल रहे हैं। इनमें से अधिकांश मामलों में अभियोजन की स्वीकृति लंबित है। आईएएस अधिकारियों में सेवानिवृत्त आईएएस अजातशत्रु श्रीवास्तव, बृजमोहन शर्मा, कवींद्र कियावत, अरुण कोचर, अखिलेश श्रीवास्तव, शिवपाल सिंह, मनोज माथुर और 35 कलेक्टर और एसडीएम शामिल हैं। जबकि छिंदवाड़ा जिले के अमरवाड़ा के तत्कालीन एसडीओ (राजस्व) फरतुल्ला खान, बिहार के तत्कालीन एसडीएम प्रवीण फुलगरे और बालाघाट जिले के तत्कालीन नगर निगम आयुक्त विवेक सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। इन मामलों में लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू ने सरकार से कार्रवाई की मंजूरी मांगी है, लेकिन ज्यादातर मामलों में मंजूरी नहीं मिल पाई है।

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