धर्म

राजस्थान के इस मंदिर में प्रसाद के रूप में भक्तों को मिलती है पतंग,18 सालों से चली आ रही है श्रृंगार की परंपरा

मकर संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है, जिसमें मनोरंजन के रूप में पतंग का खास उत्साह रहता है. त्यौहारी सीजन और खास मौके पर भगवान का श्रृंगार करने का एक अद्भुत महत्व माना जाता है और भगवान को त्योहारों के तर्ज पर रूप श्रृंगार और पोशाक पहनाई जाती है. भीलवाड़ा जिले के मंदिरों में मकर संक्रांति का त्यौहार बड़े खास तरीक़े से  मनाया जा रहा है और भीलवाड़ा शहर के श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर मकर संक्रांति के त्यौहार को देखते हुए भगवान का विशेष श्रृंगार किया गया. इसके तहत शहर के संकट मोचन हनुमान मंदिर में करीब 2 हजार से अधिक राम नाम पतंगों के द्वारा हनुमान जी का श्रृंगार किया गया.

यह श्रृंगार करीब 18 सालों से लगातार किया जा रहा है. खास बात यह है कि मंदिर में आने वाले बच्चों और भक्तों को  प्रसाद के रूप में पतंग का वितरण किया जाता है. सभी पतंगे विशेष तौर पर गुजरात के अहमदाबाद से मंगाई गई है. भगवान हनुमान जी का यह मनमोहक दृश्य देखने के लिए संकट मोचन हनुमान मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है. हनुमान जी के इस रूप को तैयार करने में करीब 2 दिन का समय लगा है और भक्त इस दृश्य को कहीं ना कहीं अपने मोबाइल में कैद कर रहे हैं.

18 सालों से चली आ रही परंपरा
संकट मोचन हनुमान मंदिर के महंत बाबू गिरी महाराज बतात हैं कि विगत 18 सालों से लगातार भीलवाड़ा शहर के मुख्य डाकघर के निकट स्थित श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर में मकर संक्रांति को लेकर भगवान हनुमान जी महाराज का राम नाम पतंगों के साथ श्रृंगार किया जाता है. इसमें 2100 से अधिक विभिन्न तरह की छोटी-बड़ी डिजाइनिंग पतंगों का इस्तेमाल किया गया है. करीब आधा दर्जन लोगों की मेहनत और 2 दिन के समय के बाद यह श्रृंगार तैयार हुआ है. भक्तों को भगवान के इस दिव्य श्रृंगार को देखने के लिए मौका मिला है. बाद में हनुमान जी महाराज की महाआरती करने के बाद यह पतंग छोटे बच्चों को प्रसाद के रूप में वितरित कर दिया जाएगा.

भक्तों को मनोकामना होती है पूरी

महंत बाबू गिरी जी महाराज ने बताया कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं हनुमान जी महाराज पूरी करते हैं. इसके साथ ही बुरी नजर वाले रोगियों का भी यहां इलाज हो जाता है. अपने चमत्कार को लेकर यह मंदिर इतना प्रसिद्ध है कि दूर-दूर से भक्त यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

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